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नारी नर से भारी फिर ये कैसी लाचारी- – – – ?
प्रिय मित्रों भारतीय समाज में नारी सदियों से पूजनीय रही है ,नारी का स्थान युगों युगों से ही सर्वोपरि माना गया है , यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः , यानि जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का वास होता है , लेकिन आज के युग की बिडम्बना देखिये की नारी को पूजने के बजाय उसे जिन्दा जला दिया जा रहा है ; आज का पुरुष प्रधान समाज अपने वजूद को ही मिटाने पर तुला हुआ है , अगर नारी ही नहीं रहेगी तो पुरुष का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा . नर और नारी एक गाड़ी के दो पहिये के सामान है जिस प्रकार दोनों पहिये के बिना गाड़ी सुचारू रूप से नहीं चल पाती है उसी प्रकार नारी के बिना नर का कोई मतलब नहीं है ,आचार्य श्रीराम शर्मा ने नर और नारी को एक सिक्के के दो पहलू करार दिए है .नारी के अन्दर वह शक्ति है क़ि वह ब्रह्मा ,विष्णु, महेश को भी अपने वश में कर लिया था , वह चाहे तो दुनिया क़ि दशा व दिशा पल भर में बदल दे , आवश्यकता है वश अपने अन्दर छुपी हुयी शक्ति को पहचानने क़ि , आज धीरे धीरे नारियां अपनी उर्जा का उपयोग करना शुरू कर दी है ,जिससे पुरुष वर्ग काफी हतोत्साहित नजर आ रहा है आज नारी अब जयशंकर प्रसाद के कविता क़ि अबला नहीं रह गयी है ; नारियां अपने कर्तब्यों का निर्वहन करना बखूबी जान गयीं है , आकाश से पाताल तक नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलकर चल रहीं है . अब वह कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है जहाँ नारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज न कराई हों . नारी हर प्रकार के गुडों से भरी हुई है , नारी क़ि ममता ,सहनशीलता , किसी से छिपी नहीं है . यह सब जानते हुए भी पुरुष वर्ग नारियों के अन्दर छुपी हुई उर्जा को दबाने का प्रयास कर रहा है क़ि कहीं नारियां हमसे आगे न निकल जाएँ . अगर पुरुष वर्ग अपने अहम् को त्याग कर नारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलाना शुरू कर दे तो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है , कहा गया है क़ि देर आये दुरुस्त आये . हमने एक लेख में पढ़ा था क़ि नारी कोई पत्थर नहीं क़ि उसे ठोकर मारा जाये , नारी कोई पुष्प नहीं क़ि उसका मर्दन किया जाये , नारी कोई पर्वत नहीं क़ि उसे लांघ जाये , नारी कोई वास्तु नहीं क़ि उसे बेचा जाये , बल्कि नारी वह शक्ति है जिसकी पूजा क़ि जानी चाहिए . नारी नर से भारी अब छोडो लाचारी- – – – ?
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